Monday, April 17, 2017

क्या हाथों की रेखा में

लिखा हुआ है ​क्या हाथों की रेखा में
इस भाषा को कौन कहो पढ पाया है
रेखाओ के रेखगणित के अंकों का
शब्दजाल किसने कितना सुलझाया है 

कोई देखे सारणियों के चौघड़िए
कोई पाखी से चिट्ठी को छंटवाये
आगे हाथ पसारे किसी सयाने के
कोई घटा बढ़ी को फिर फिर जुड़वाए

करे पहेली से कितनी माथापच्ची
लेकिन छोर कही पर नजर न आया है

​हाथों​
 की रेखा से जोड़ी है कितनी
बारह खानों के नक्षत्रो की गतियां
ज्योतिष से, पंडित से ज्ञानी ध्यानी से
हर इक बार मांगते आये सम्मतियाँ

आसेबो के सायों की आशंका को
गंडों
​ और तावीज़ों​
 में बंधवाया है

हर कोई ढूंढें हाथों की रेखा में
कहाँ प्रगति
​ उन्नति​
 सीढ़ी का छिपा सिरा
दरगाहों के मन्नत वाले धागों में
बंधा हुआ खुल जाए भाग्य अगर ठहरा

सातों दिन मंदिर की मूरत के आगे
शीश झुकाकर कितना भोग लगाया है

किसे 
​पता 
है रेख कौन सी हाथों की
कि
​से 
पतंग बना
​, ​
 दे नभ की ऊंचाई
रेख कौन सी भोर करे नित आँगन में
किसकी करवट बन जाती है कजराई

​है तिलिस्म से बंधा लेख यह विधना का
देव-मनुष्य कोई भी समझ ना पाया है