केसर घोल रहा है सूरज अभिनंदन का थाल सजाकर
किरणें छेड़ रही सारंगी, सरगम के सुर नए सजा कर
प्राची की देहरी पर रंग कर सिंदूरी अल्पना नई इक
तुहिन कणों पर इन्द्रधनुष की कूची फेर रहा रह रह कर
पिघले हुए स्वर्ण से रचता आभूषण बहती धारा में
कोंपल की निद्रा को तोड़े स्पर्श गुनगुने से सहला कर
पादानों पर चढ़ता अपना अश्व -ताल संगीत बजा कर
केसरघोल रहा अहै सूरज अभिनन्दन का थाल सजा कर
कोटर में छिपते तम के घट हाथ बढ़ा कर पीते पीते
पाखी के पर में भरता है निर्णय नए उड़ानों वाले
अपनी किरणों की कैंची से एक एक कर छांट रहा है
बिखरे हुए व्योम में जितने थे आवारा बादल काले
ईश भवन के पट को खोले मंगल सुर में आरती गाकर
केसर घोल रहा है सूरज अभिनन्दन का थाल सजा कर
पनघट बन आवाज़ लगाता आएं नृत्य करें पैंजनिया
चूम कली को हौले से मुस्कान जगाता है अधरों पर
कर्मनिष्ठता को करता है सहज अग्रसर जीवन पथ पर
अलसाया शैथिल्य हटाता, नई ऊर्जा संचारित कर
लिखने को अध्याय नया नवदिन के नव कोरे कागज़ पर
केसर घोल रहा है सूरज अभिनन्दन को थाल सजाकर