Wednesday, February 8, 2012

वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा


सीपियों में मोतियों की लग गईं लड़ियां संवरने
वाटिकाओं में कपोलों की लगे फिर फूल खिलने
कोर पर आकर अधर के रुक गया कोई सितारा
वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा

धुल गये पल सब अनिश्चय के ह्रदय से
खोल परदा रश्मियाँ फिर मुस्कुराईं
बन्दिनी थी भावना मन के विवर में
ज्योत्सना को ओढ़ फिर से जगमगाईं
रंग उजड़े रंग में फिर से भरे नव
फ़ाग छेड़े कुछ नये पुरबाईयों ने
एक बादल को लिया भुजपाश में भर
कसमसाकर थक रही अंगड़ाईयों ने

स्वप्न ने शॄंगार कर निज को संवारा
वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा

रात की सूनी पड़ी पगडंडियों पर
पालकी आई उतर निशिगंध वाली
वेणियों के पुष्पगुच्छों से इतर ले
माँग अपनी नव उमंगों से सजा ली
लग पड़ी बुनने छिटकती रश्मियों से
भोर के पथ में बिछाने को गलीचे
नीर ले सौगंध के आभास वाला
क्यारियाँ यों में फिर नये विश्वास सींचे

नोन राई ले कलुष सारा उतारा
वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा

कुछ नये अध्याय खोले रागिनी ने
पीर की सारंगियों की धुन बदलकर
चढ़ गईं मुंडेर अभिलाषायें नूतन
कामना की सीढ़ियों पर पांव धर कर
तोड़ कर तटबन्ध सारे संयमों के
जाह्नवी निर्बाध उमड़ी भावना की
ज़िन्दगी के तप्त मरुथल में लगा यौं
आ गईं घिर कर घटायें साधना की

ढल गया सारा सुधा में अश्रु खारा
वेदना ने स्पर्श जब पाया तुम्हारा

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