Monday, July 11, 2011

वे धुंधले हो गये अचानक

जीवन के इस संधि पत्र पर,सांसों ने धड़कन से मिलकर
जो हस्ताक्षर किये हुए थे, वे धुंधले हो गये अचानक
नयनों की चौकी पर खींची गईं विराम की रेखायें थीं
समझौता था नहीं अतिक्रमण अश्रु-सैनिकों का अब होगा
मन की सीमाओं पर यादें कभी नहीं घुसपैठ करेंगीं
गुप्तचरी से कोई सपना आंखों में दाखिल न होगा
किन्तु न जाने किस ने करके उल्लंघन तोड़ी हैं शर्तें
नये ढंग से लिखा जा रहा इस विराम का आज कथानक
शान्ति-वार्ता के सारे ही आमंत्रण रह गये निरुत्तर
" पता नहीं मालूम" लिये है लौटा पत्र निमंत्रण वाला
किये फोन तो पता चला है नम्बर यह विच्छेद हो गया
और पते वाले दरवाजे पर लटका था भारी ताला
किसको भेजें इक विरोध का पत्र यही असमंजस भारी
सन्धि पत्र की धाराओं का जिसने लिखा हुआ है मानक
सौगन्धों की रक्षा परिषद ने सारे सम्बन्ध नकारे
शीत युद्ध में लीन मिले सब, सूखे फूल किताबों वाले
इतिहासों की गाथाओं ने चक्रव्यूह ही रचे निरन्तर
हुए समन्वय वाले सारे स्वर बिल्कुल आड़े-चौताले
उत्तरीय फिर से अनुबन्धन का कोई आ लहरा जाये
दीप्तिमान करता आशा को संध्या भोर निशा यह स्थानक
आठों याम अड़ी रहती है मन की कोई भावना हठ पर
और नियंत्रण बिन्दु कहां हो ? नहीं चेतना सहमति देती
सुधियां तो बहाव की उंगली पकड़े चाह रही हैं चलना
पर यथार्थ की चली हवायें नौका को उल्टा ही खेतीं
पाठ शान्ति के पढ़ा सके जो आज पुन: जीवन में आकर
आस बालती दीपक आये पार्थसारथि, गौतम, नानक

3 comments:

Shardula said...

सुधियां तो बहाव की उंगली पकड़े चाह रही हैं चलना
पर यथार्थ की चली हवायें नौका को उल्टा ही खेतीं --- बहुत सुन्दर!
...सादर शार्दुला

Shardula said...

लिखा जा रहा इस विराम का आज कथानक :) ?

Shardula said...

Kalam gum gayi hai ka geetkar sahab ki ? :)
Itna sannatta is blog pe? :(