Thursday, October 28, 2010

प्रियतम तेरे इन्तज़ार में

प्रियतम तेरे इन्तज़ार में पिछले दो महीने में मैने

घर में जितनी मूँग रखी थी वो सारी की सारी दल दी



हफ़्ते भर का वादा करके गये पर्यटन को तुम बाहर

और कहा था थोड़ा सा है काम उसे कर के आता हूँ

थोड़े से पकवानों की तुम फ़रमाईश कर मुझे गये थे

कहकर अभी लौटकर इनको साथ तुम्हारे मिल खाता हूँ



इसीलिये मैने बज़ार से ताजा सभी मंगा कर रखे

जीरा,धनिया,सौंफ़ हींग के संग संग अजवायन और हल्दी



रबड़ी का कुल्ला मंगवाया था हलवाई से जो परसौं

डेढ़ किलो वह मैने ही बस जैसे तैसे निपटाया है

कलाकंद,रसगुल्ले,लड्डू, बालूसाही और जलेबी

इनके सिवा न कुछ भी मैने बिना तुम्हारे प्रिय,खाया है



पिट्ठी जो मँगवा रक्खी थी दहीबड़ों की खातिर मैने

दरवाजे पर नजर टिकाये,जाने कैसे मैने तल दी



लिए गिट्स के पैकेट जो थे चार रवे की इडली वाले

उन्हें बनाया, साथ ढोकला दो पैकेट तैयार किया था

और पड़ोसन ने भी परसौं चार पांच सौ बना लिए थे

दाल मूंग की भरे समोसों का मुझको उपहार दिया था



बाट जोहते मीत तुम्हारी पता नहीं क्या मुझे हो गया

मेरी परछाईं आकर के इन सब को खा पीकर औ चल दी