Thursday, December 31, 2009

वर्ष प्रस्थान

झर गये पत्र सब पेड़ की शाख से

तीन सौ साठ के सँग रहे पाँच वे

कुछ हरे,पीत कुछ, कुछ थे सूखे हुए

पारदर्शी रहे ज्यों बने काँच के

कुछ किरण स्वर्ण से थी नहाई हुई

और कुछ ओढ़ कर चाँदनी को मिली

कुछ चलीं गांव को छोड़ कर, राह में

थी भटकती रहीं मंज़िलें न मिली

स्वप्न ने अल्पनायें रँगी नैन में

आस ने थे नये कुछ गलीचे बुने

कुछ स्वरों ने निरन्तर थी आवाज़ दी

और कुछ सुर किसी ने तनिक न सुने

बीत जाते पलों ने लिखे पॄष्ठ कुछ

खिंच गई याद की इक ्नई वीथिका

एक इतिहास फिर से संवारने लगा

दो कदम साथ बस जो चली प्रीत का

जम गई धूल पहले गिरे पत्र पर

एक अंकुर नया फिर दहकने लगा

एक बूढा बरस शायिका पर गिरा

बालपन का दिवस इक चहकने लगा

क्या खबर है उसे ? उसकी परिणति वही

जोकि जाते हुए की हुई आज है

आज आरोह ले जो खडा गा रहा

बस उसी ने ही कल खोनी आवाज़ है

इसलिए आओ हम आज को बाँध लें

हाथ अपने बढ़ा मुट्ठियाँ बंद कर

कौन जाने लिखे क्या समय की कलम

कल पुराने हुए एक अनुबंध पर

Thursday, December 10, 2009

पंकज सुबीरजी- प्रणय वर्षगाँठ शुभ हो

श्वेत पत्रों पे बैठी हुई शारदा, बीन के राग में गीत गाती रहे
रक्त वर्णी किये पांखुरी, विष्णु की प्रियतमा पायलें झनझनाती रहे
ज्योत्सना की परी आ धरा पे रँगे चान्दनी की किरन से दिवस आपके
और रेखा स्वयं जयश्री बन सदा, आपके भाल टीका लगाती रहे
 
शुभकामनायें
 
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पंकज के पत्रों पर रेखा लिखती है शबनम से पाती
लगी झूमने शुभ्र चांदनी तारों सा आँचल लहराती
परियां बन कर अभिलाषाएं उड़ती फिरती है आँगन में
नाच रही हर एक पंखुरी मलयज के संग संग बतियाती

मौसम ने ली ओढ़ अचानक फागुन सी रंगीन चुनरिया
प्रीत छेड़ती नई धुनों में भीगी हुई मिलन बाँसुरिया
करते हैं अभिषेक नयन की कोरों से रिस रिस कर सपने
लगा आज सीहोर आ गए राधा के संग में सांवरिया

दसों दिशाएँ हुई उल्लासित आज दिसंबर दस के दिन को
मढ़ कर स्वर्णमयी करती हैं उस रजताभ अनूठे छिन को
कमल पत्र पर उभर गई थी रेखाएं जब घनी प्रीत की
मन के इतिहासों ने सौंपा सत्र स्वयं का पूरा जिनको

नौ वर्षों के पथ में चलते कदम साथ हो गये नवग्रह
ढली प्रेरणाओं में मन की सहज भावना कर कर आग्रह
नयी नयी मंज़िल पायें नित, यही कामना सजती है अब
और लुटाते रहें आप दोनों मिल कर सब ही पर अनुग्रह