भाल टीका लगाती रहे जयश्री
हो कथा सत्यनारायणी आँगना
दीप्त हो आपकी राह, हर मोड़ पर
और बाधाओं से हो नहीं सामना
हर सितारा चले चाल अनुकूल ही
औ’ दिशायें सभी आपकी मित्र हों
जो क्षितिज पर बनें भोर में सांझ में
आपके ही सभी रंगमय चित्र हों
द्वार गूँजे सदा प्रीत की बाँसुरी
भारती तान अपनी सुनाती रहे
पांव में सरगमें बाँध कर रागिनी
नॄत्य करती रहे, गुनगुनाती रहे
कोंपलें पल की होती रहें अंकुरित
ईश से कर रहा हूँ यही प्रार्थना
आपका पथ सजाती रहे रात दिन
ओस भीगी हुई फूल की पांखुरी
भोर गंगाजली से उंड़ेली हुई
सांझ हो अर्चना की भरी आंजुरी
मंत्रपूरित रहे दोपहर आपकी
हो निशा चाँदनी में नहाये हुए
और मौसम सुनाता रहे बस वही
गीत जो आपने गुनगुनाये हुए
आपकी लेखनी से सहज ही खुले
हो कहीं कोई भी एक संभावना
नित्य जलते रहें दीप विश्वास के
और संकल्प, संकल्प नूतन करें
लौ अखंडित रहे ज्ञान की प्रज्ज्वलित
प्राण निष्ठाओं के सौष्ठव से भरें
आपका पायें सान्निध्य जो भी वही
पुष्प की वाटिका से सँवरते रहें
गीत हो हो गज़ल या कहानी कोई
आपका स्पर्श पायें सँवरते रहें
लिख रहा हूँ ह्रदय में उठी भावना
जो समय मिल सके तो इसे बाँचना