Wednesday, June 18, 2008

स्वीकारो मेरा अभिवादन

चिट्ठा जगत के परम आदरणीय संगणक अभियन्ताओं के पेशे नजर


प्रोद्योगिकी सूचना वाली के इकलौते भाग्य विद्झाता
तेरह घंटों से भी ज्यादा, नित्य काम करने की आदी
अन्तर्जाली दुनिया के तुम राज नगर के हो शहज़ादे
कुंजी वाली एक पट्टिका से कर ली है तुमने शादी

प्रभो संगणक अभियन्ता हे ! स्वीकारो मेरा अभिवादन

कहां सूचना कितनी जाये, ये निर्णय तुम पर है निर्भर
प्रेमपत्र के लिये कबूतर, केवल एक तुम्हारा इंगित
दिल का मिलना और बिछुड़ना या फिर टूट धरा पर गिरना
इसका सारा घटनाक्रम, बस तुम ही करते हो सम्पादित

धन्य तुम्हारा निर्देशन है, धन्य तुम्हारा है सम्पादन

खाना भी तुम जब खाते हो, वह इक दॄष्य निराला होता
एक हाथ में सेलफोन है, एक हाथ में रहता काँटा
कहाँ गया लेटस का पत्ता,या कटलेट कहां खोया है
सिस्टम को एडिट करना भी बहुत जरूरी है अलबत्ता

तुम पर ही तो निर्भर है हर एक फ़ैक्ट्री का उत्पादन

केवल एक तुम्हारा मैनेजर ही बस तुमसे ऊपर है
जिसके आगे नित्य बजाते हो तुम एक हाथ से ताली
यदि वह नर है तो निश्चित ही महिषासुर का है वो वंशज
और अगर नारी है तो वह सचमुच ही है हंटर वाली

एक वही है नाच नचाता, हो कितना भी टेढ़ा आँगन

माईक्रोसाट तुम्हीं से, तुमसे है याहू तुमसे ही गूगल
तुम ही हो पीसी की खातिर, हैकिंग वाले भक्षक राहू
तुम इन्फ़ोसिस, तुम टीसीएस तुम कंसल्टिंग के अवतारी
पूरा अन्तर्जाल काँपता, फ़ड़का अगर तुम्हारा बाहू

यूनीकोड तुम्ही से, मैने आज किया जिससे आराधन
तुमसे सिन्थेसाइज है स्वर, तुम अन्वेषक हो अक्षर के
लौकिक और पारलौकिक भाषा के तुम ही एक नियंता
देवनागरी, रूसी हो या फोरट्रान , सी धन धन वाली
कुछ भी तुमसे शेष नहीं है, हो नि:शेष तुम्ही अभियंता

तुम गिटार की झंकारों में करते हो वीणा का वादन

तुम रहत हो निकट पट्ट के, फिर भी द्र्ष्टा हो वितान के
तुम ही स्वयं पहेली हो इक, तुम ही हर गुत्थी का हो हल
र्तुम्हीं दिशाओं के निर्देशक, तुम अक्षय भंदार ज्ञान के
तुम पर ही सब टिका हुआ है, जो बीता, या आयेगा कल

कीर्ति तुम्हारी सुरभित करती है दफ़्तर औ’ घर का आँगन
स्वीकारो मेरा अभिवादन