Monday, September 17, 2007

स्वप्न रह गया स्वप्न ही

बात तो कुछ भी नहीं थी बस कुछ दिन पहले दिल्ली की खबर पढ़ी थी जिसमें लिखा था फ़ुरसतिया महाराज अपने मशहूर लड्डुओं के डिब्बे के साथ दिल्ली आये थे तो साहब हमारे मुँह में भी बाढ़ आ गई. इसी दौरान टोरांटो से श्री श्री कुंडली नरेश ने फोन खड़का दिया कि वे दिवाली के फ़ौरन बाद दिल्ली पधारने वाले हैं हमारे पास भी पेंडिंग में ढेरों तकाजे पड़े थे ( अब सब के नाम तो गिनवा नहीं सकते ), इसलिये आव देखा न ताव, फ़ुरसतियाजी के लड्डुऒं और उड़नतश्तरी के प्रोत्साहन ने हमें विवश कर दिया कि हम भी भारत यात्रा का कार्यक्रम बना लें. पर साहब लगता है कि हमने निर्णय लेने में बड़ी भूल कर दी. हमारा निर्णय लेते ही जो हाल हुआ है वह काबिले गौर है. आप देखें और बतायें कि इसका दोष किस माथे पर तिलक की तरह लगाया जाये ?




मित्रों ने रिश्तेदारों ने बार बार था हमें पुकारा
निश्चित हुआ भ्रमण को जाना भारत में इस बार हमारा

जैसे ही छुट्टी की अर्जी की हमने दाखिल दफ़्तर में
हमें बास ने पकड़ लिया, जो गलती से था हिन्दुस्तानी
उसे भेजना था कुछ अपने छोटे भाई के बेटे को
न सुन पाने की आदत थी रही सदा उससे अनजानी

उसने मोबाईल का नम्बर और पता हमको दे मारा

श्रीमतीजी ने घर आते ही हमको इक लिस्ट थमा दी
छह पन्नों पर लिखा हुआ था किस किसको क्या ले जाना है
पाँच भतीजी चार भतीजे तीन भांजी सात भांजे
साला साली, भाई भाभी सब का ध्यान रखा जाना है

अविरल बहती थी सूची हो जैसे इक नदिया की धारा

लैपटाप लेटेस्त माडलों वाले दो, सोनी के लेने
तीन एम पी थ्री प्लेयर चालीस गिग की ड्राइव वाले
डिजिटल चार कैमरे जिनके पिक्सेल भी छह मिलियन तो हों
और फोने दो चिप जिनमें हों जी एस एम की क्षमता वाले

प्रथम पॄष्ठ ही देख लगा है घिघियाने अब बजट हमारा

हों पर्फ़्यूम डिजाइन वाले कुछ डियोर के कुछ शनेल के
एक अंगूठी नगों जड़ी हो जिसे टिफ़ैनी से लाना है
घड़ी ब्रेटलिंग और कार्टिये, इनसे नीचे नहीं उतरना
आखिर को रिश्तेदारी में अपना चेहरा दिखलाना है

एक बार होती फ़रमाईश, कोई करता नहीं दुबारा

लिस्ट अभी आधी देखी थी टोटल खर्चा बीस हजारी
उस पर अभी तीन टिकटों की रकम जोड़नी भी बाकी है
और वहां पर दिल्ली, बम्बई, जयपुर व कलकत्ता जाना
वॄन्दावन जा हमें देखनी कॄष्ण कन्हैया की झांकी है

लिस्ट हाथ से लगी छूटने, हो जैसे तपता अंगारा

हमें गाज़ियाबाद और फिर गुड़गांवा भी तो जाना है
फिर प्रतापनगरी में जाकर कवितापाठ सुनाना होगा
छह गज़लों से चार गीत से शायद काम वहां चल जाये
लखनऊ जाकर लेकिन हमको गीतकलश छलकाना होगा

फ़ुरसतियाजी का सन्देसा दरवाज़े पर आन पुकारा

तभी दूसरी लिस्ट थमाई गई हाथ में हमको लाकर
उसमें था सामान, खरीदारी जो करनी है भारत में
पाँच शरारे, आठ गरारे, दस सलवार सूट रेशम के
पन्द्रह साड़ी, मिल जायेंगी नई सड़क वाली आढ़त में

घंटे वाले हलवाई का मावा लिपटा हुआ छुआरा

और दरीबा दिल्ली वाला जहाँ जेवरों की दुकान हैं
एक सेट हीरे पन्ने का और एक दो मोती वाले
कुन्दन वाला नया डिजाईन मिल जाये तो लेना होगा
चांदी के लाने गिलास हैं बारह, छह थाली, छह प्याले

गर्मी के मौसम में हमको लगने लगा भयंकर जाड़ा

कहा चैकबुक ने ये सब उसके बूते की बात नहीं है
क्रेडिट कार्ड मैक्स आऊट हैं, उनका कुछ भी नहीं भरोसा
छोड़ो अब लड्डू के सपने वो न तुम्हें मिलने पाऒ
बैठो घर पर खाओ प्यारे चार रोज का रखा समोसा

इसी तरह ही सरदर्दी से मिल पाये तुमको छुटकारा
भारत जाना अब तो लगता संभव होगा नहीं हमारा

5 comments:

Udan Tashtari said...

हा हा!!

आपकी दारुण कथा सुनकर आँख से आंसू आते आते रह गये. :)

अब जा रहे हैं कि नहीं. जरा कन्फर्म बताईये. कुछ सामान भिजवाना था. ज्यादा नहीं है. एक झोला भरके है बस. :) फोन नम्बर दे दूँगा वो डायरेक्शन दे देंगे तो पहुँचा दिजियेगा.

Divine India said...

आँसू आगये सुनकर…
कथा बड़ी दु:खदायी है…
हमने भी आपकी राहों में कितने सहर बिताएँ है…
बस आ ही जाइए… मेरा कुछ सामान आपने साथ वापस यु एस लेते जाइए… :)

SahityaShilpi said...

बड़ी ही हृदय-द्रावक कथा है! बमुश्किल आँसुओं को जज़्ब कर पाया हूँ. :)

Reetesh Gupta said...

पाँच शरारे, आठ गरारे, दस सलवार सूट रेशम के
पन्द्रह साड़ी, मिल जायेंगी नई सड़क वाली आढ़त में

वाह वाह राकेश जी ...बहुत खूब ...खूब हँसाया आपने ...सही है बधाई..

Dr.Bhawna Kunwar said...

क्या बात है ! आपकी हालत देखकर आप पर तरस आ रहा है... लगता है भारत जाना ही नही हो पायेगा अगर इसी तरह लिस्ट बढ़ती रही... बहुत खूब व्यथा बयान की है। :)