Friday, August 3, 2007

ये गीत लिख रहे हैं

तुम्हारी नजरों को देख कर हम, हुज़ूर ये गीत लिख रहे हैं
न जाने कैसा चढ़ा है हम पर सुरूर, ये गीत लिख रहे हैं

वे और होंगे जिन्हें ये दावा है वे सुखनवर हैं, वे हैं शायर
हमें तो इस पर नहीं जरा भी गुरूर, ये गीत लिख रहे हैं

कहां है मुमकिन जुबां को खोलें या कोई इज़हार कर सकें हम
ख़ता हमारी है इतनी केवल जरूर, ये गीत लिख रहे हैं

तुम्हारी महफ़िल से अजनबी जो, शनासा थी कल तलक हमारी
उस तिस्नगी के खयाल से भी, हो दूर ये गीत लिख रहे हैं

उठाओ तुम भी जनाब उंगली, जो लिख रहे हो वो गात कब है ?
नहीं गज़ल की है बंदिशों का शऊर, ये गीत लिख रहे हैं

2 comments:

Udan Tashtari said...

बहुत खूब गीत में गज़ल कह गये आप.

शनासा का अर्थ भी बता दें जरा. वैसे तो सार में समझ आ गया.

दाद कबूलें.

कंचन सिंह चौहान said...

कहां है मुमकिन जुबां को खोलें या कोई इज़हार कर सकें हम
ख़ता हमारी है इतनी केवल जरूर, ये गीत लिख रहे हैं

उठाओ तुम भी जनाब उंगली, जो लिख रहे हो वो गात कब है ?
नहीं गज़ल की है बंदिशों का शऊर, ये गीत लिख रहे हैं
हमेशा की तरह सुंदर