Thursday, June 28, 2007

ओ मेरे प्राणेश-तुम्हारे बिना नहीं है कुछ भी संभव

पिछले कुछ दिनों में कई रचनायें पढ़ीं. दिव्याभ और साध्वी रितु के दॄष्टिकोण और अन्य कई चिट्ठाकारों के अनुभव, शिकायत और नजरिये से प्रेरित होकर कुछ पंक्तियों का संयोजन स्वत: ही हो गया है.

आपकी प्रतिक्रिया अपेक्षित है:-

एक तुम्हारा अनुग्रह पाकर भक्ति भावना जागी मन में
वरना भटक रहे जीवन को कोई दिशा नहीं मिल पाती

इस मन के सूने मरुथल में तुम बरसे बन श्याम घटायें
एक तुम्हारी कॄपादॄष्टि से सरसीं मन की अभिलाषायें
इस याचक को बिन मांगे ही तुमने सब कुछ सौंपा स्वामी
फिर जीवंत हुईं हैं जग में कॄष्ण-सुदामा की गाथायें

एक तुम्हारी वंशी के इंगित से सरगम जागी जग में
वरना बुलबुल हो या कोयल कोई गीत नहीं गा पाती

करुणा सूर्य तुम्हारा जब से चमका मेरी अँगनाई में
हर झंझा का झौंका, आते ढल जाता है पुरबाई में
नागफ़नी के कांटे हो जाते गुलाब की पंखुरियों से
गीत सुनाती है बहार, हर उगते दिन की अँगड़ाई में

एक तुम्हारा दॄष्टि परस ही जीवन को जीवन देता है
केवल माली की कोशिश से कोई कली नहीं खिल पाती

तेरी रजत आभ में घुल कर सब स्वर्णिम होता जाता है
मन पागल मयूर सा नर्तित, पल भी बैठ नहीं पाता है
तू कवि तू स्वर, भाषा,अक्षर,चिति में चिति भी तू ही केवल
तेरे बिन इस अचराचर में अर्थ नहीं कोई पाता है

तेरे वरद हस्त की छाया, सदा शीश पर रहे हमारे
और चेतना इसके आगे कोई प्रार्थना न कर पाती.

Monday, June 25, 2007

एक मुक्तक और

उंगलियों ने मेरी थाम ली तूलिका, चित्र बनने लगे हर दिशा आपके
चूम ली जब कलम उंगलियों ने मेरी नाम लिखने लगी एक बस आपके
पांखुरी का परस जो करें उंगलियां, आपकी मूर्ति ढलती गई शिल्प में
किन्तु गिन न सकीं एक पल, उंगलियां जो जुड़ा है नहीं ध्यान से आपके

Tuesday, June 19, 2007

नारद का तो काम रहा है केवल आग लगाना जी

फ़ोन आया हमरे हितैषी का. बहुत गुस्से मेम थे. हलो कहते ही बरस पड़े
" मियां क्या हो गया है तुम्हें . इतना बवाल मचा हुआ है और तुम हो कि नीरो की तरह रोम को जलता हुआ छोड़ कर चैन की वंशी बजा रहे हो. छोड़ो ये हारमोनियम की धुन और कूद पड़ो स्म्ग्राम में. देखो कितने महारथी आज संजाल पर कुरिक्षेत्र बना रहे हैं और बेचारे शांतिदूतों के उपदेशों की धज्जियां उड़ा रहे हैं "

हम सकपकाये. " आप किसकी बात कर रहे हैं ?"

" लगता है आजकल चिट्ठे पढ़ते नहीं हो तभी ऐसे अनजान बन रहे हो " वे बोले

अब क्या बतायें आपको. ले दे के पढ़ने लिखने के लिये जो घड़ी की तिजोरी से एक-दो घंटे चुरा पाते हैं, हम उसमें सिर्फ़ अपनी पसन्द के लेखन को ढूँढ़ कर पढ़ते हैं. इसलिये हमें पता नहीं."

वे चले गये तो रहा न गया. हमने भी सोचा कि दुनिया पानी में बहती है तो हमें भी तो चलती हवाके साथ बहनाचाहिये. तो साहब, हम सिर्फ़ अपनी बात कर रहे हैं और हवा के साथ ऐसे बह रहे हैं :-----


हाथ हमारे भी इस बहती गंगा में धुलवानाजी
ढपली एक हमारी उस पर तुम भी थाप लगाना जी

हम जब मुर्गी आयें चुराने, दड़बा खुला हुआ रखना
और दूसरा कोई आये, चोर चोर चिल्लाना जी

हाय हिन्दू हाय मुस्लिम, इससे आगे बढ़े नहीं
माना है ये खोटा सिक्का, हमको यही चलाना जी

फ़ुल्ले फ़ूटे हुए, हवा के साथ चढ़ चुके हैं नभ पर
ठूड्डी शेष पोटली में है, उसे हमें भुनवाना जी

मस्जिद में फ़ूटे बम चाहे मंदिर का हो कलश गिरा
हमको सब कुछ गुजराती के मत्थे ही मढ़वाना जी

बाकी के सब शब्द आजकल हमको नजर नहीं आते
इसीलिये तो नारद नारद की आवाज़ लगाना जी

कौन यहाँ किस मतलब से है, इससे कोई नहीं मतलब
सिर्फ़ हमारा झंडा फ़हरे, इसकी आस लगाना जी

कुछ भी समझें या न समझें, आदत लेकिन गई नहीं
काम हमारा रहा फ़टे में आकर टांग अड़ाना जी

वैसे तो है निहित स्वार्थ अपना, पर क्यों हम बतलायें
इस्तीफ़े की गीदड़ भभकी, केवल हमें दिखाना जी

Monday, June 18, 2007

पितॄ दिवस की शुभकामनाये<

ज़िन्दगी के घने इस बियावान में
जिसका आशीष हमको दिशायें बना
जिसके अनुराग के सूर्य ने पी लिया
राह के मोड़ पर छाया कोहरा घना
सॄष्टिकारक रहे दाहिने जो सदा
आज स्वीकार कर लें हमारा नमन
आपका स्नेह मिलता रहे हर निमिष
आज के दिन यही हम करें कामना

Thursday, June 14, 2007

बिना शीर्षक

जाने कैसी हवा चली है, क्या हो गया ज़माने को
जिसको देखो, वही खड़ा, ले आईना दिखलाने को

इस हमाम में नहीं देखता कोई अपनी उरियानी
जिम्मेदार बने हैं औरों पर उंगलियां उठाने को

इस नगरी में दशरथनंदन रहते सदा निशाने पर
कौन जाये उनकी गलियों में अहमक को समझाने को

बिछे हुए हैं अब शोले ही शजरों की परछाईं में
आप लाये कच्चे सूतों की दरियां यहाँ बिछाने को

नाम नये दे देकर फिर फिर से उसको दोहराते हो
कब तक और सुनाओगे इक घिसे पिटे अफ़साने को

बात अदब की तो करते हैं, पर करते बेअदबी से
नाम आप जो देना चाहें दें ऐसे नादानों को

है लिबास तो, लेकिन इनकी फ़ितरत हुई न इंसानी
मौका मिलते ही बेचा करते अपने भगवानों को

Friday, June 8, 2007

अनाड़ी शायर

क्या रदीफ़-ए-गज़ल, काफ़िया, क्या बहर, हम न जाने कभी, हम अनाड़ी रहे
सल्तनत शायरी की बहुत है बड़ी और हम एक अदना भिखारी रहे
फिर भी जब बात बारीकियों की चले , ज़िक्र हो जब भी इज़हार-ए-अंदाज़ का
तो यकीं है हमें ओ मेरे हमसुखन ! तेरे लब पे बयानी हमारी रहे

Tuesday, June 5, 2007

मैं भी इक दिन गीत लिखूंगा

आजकल चिट्ठे पर नये नये रूप में तथाकथित गज़ल, गीत, कविता और अकविता की भरमार हो रही है, और हम हैं कि कलम हाथ में लिये टुकुर टुकुर खाली स्क्रीन को देखे जा रहे हैं. कई बार आवाज़ लगाइ अपने कलाकार को, कई सन्देशे भेजे मगर सभी नाकाम हुए. हार कर हमने अपने कलाकार को धर दबोचा. मियां दुनिया एक दिन में पांच पांच छह छह पोस्ट पर पोस्ट किये जा रही है गज़ल और कविता के नाम पर ( हालांकि अधिकांश में ऐसा कुछ होता नहीं है )और तुम हो कि ले दे के हफ़्ते दस दिन में कुछ डेढ़ दो शब्द लिखते हो. उठो और अपने नाम को सार्थक करो.

हमारी लताड़ पर हमारे कलाकार ने आश्वासन दिया- घबराओ मत. जल्दी ही मनोकामना पूर्ण होगी. ये लो वादा ले जाओ.

उनका आश्वासन जो मिला आपसे बाँट रहे हैं

इक दिन मैं भी लिखूँगा कविता
इक दिन मैं भी गीत लिखूँगा

अभी आजकल बहुत व्यस्त हूँ
समय नहीं बिलकुल मिल पाता
एक निमिष भी हाथ न लगता
जिसमें कुछ नग्मे गा पाता
पाँच् जौब मै व्यस्त आज कल
ऐसी कुछ मेरी दुविधा है
सिवा मेरे हर एक किसी को
कविता लिखने की सुविधा है.

छोड नौकरी जब आउँगा
तब स्वर्णिम संगीत लिखूँगा
इक दिन मैं भी गीत लिखूँगा

पहला जौब नौकरी मेरी
जो दस घन्टे ले जाती है
और दूसरा मेरी बीवी
जो बाकी दिन हथियाती है
तीजा चौथा सोशल और
वौलन्ट्री काम मेरा होता है
और पाँचवाँ बच्चों की फ़रमाईश
जिसमें मन खोता है

हार रहा हूँ रोज समय से
इक दिन अपनी जीत लिखूँगा
मैं भी इक दिन गीत लिखूँगा

नाटक मुझको लिखने होते
लिखने पडते कई सिलेबस
और किचन का काम हमेशा
मुझको कर जाता है बेवस
रोज फोन पर मुझे दोस्तों
से भी बातें करनी होतीं
दिन के साथ साथ ऐसे ही
मेरी सारी रातें खोतीं


दादी नानी ने सिखलाई
जो मुझको वो रीत लिखूँगा
इक दिन मैं भी गीत लिखूँ
गा

Friday, June 1, 2007

भाईजी- लोहा लोहे को काटता है

भाई साहब रोना रो रहे थे कि जैसे तैसे जो वज़न घटाया था, दो दिन में ही वापिस आ गया बैरंग खत की तरह. आता भी क्यों नहीं जब परहेज से दूर भाग गये. हमने लाख समझाया भाइ साहब, रोजाना की खुराक को मत बदलिये. हमने सारे डाक्टरों की सलाह को नींबू की तरह निचोड़ कर, अदरक का छोंक लगा कर तैय्यार किया था और उन्हें भेजा था पर भाई साहब ने जार्ज बुश की अकल की तरह उसे टाप सीक्रेट करार देकर सेफ़ डिपाजिट में बन्द कर दिया. अरे साहब अगर आपने इस पर अमल किया होता तो क्या मजाल एक ओंस वज़न भी आपके पास वापिस आ फ़टकता. अब क्योंकि आप सेफ़ मे रख कर शायद भूल गये हैं इसलिये दोबारा संतुलित वज़न का रहस्य आपके सामने फिर प्रकाशित कर रहा हूँ. कल से ही इस पर अमल करे और देखें कि वज़न की समस्या कैसे छूमन्तर होती है नाश्ता:- १ हनी ग्लेज़्ड डोनट १. मिक्स्ड बैरी मफ़िन ४ स्ट्राबेरी पैनकेक और मेपल सीरप १ लार्ज आर्डर हैश ब्राऊन १ टैक्सान आमलट
१ बड़ा गिलास आरेंज जूस १ फ़ुल मिल्क डबल शाट लाते लंच: ( चाहें तो एक दो आयटम कम कर सकते हैं )१. चीज किसादिया
२. फ़्राईड पनीर इन व्हाईट मैरीनारा सास
३.स्टफ़्फ़्ड बटर नान
४. कैश्यू मटर
५. मैंगो लस्सी
६. शाही मलाई कोफ़्ता
७. गुलाब जामुन या रस मलाई

अपरान्ह का नाश्ता

१. दो समोसे
२. १५० ग्राम गाजर का हलवा
३. दही बड़े और गुझिया
४. एक बड़ा ग्लास दही की लस्सी, या मिल्क शेक
५. प्योर मिल्क टी या काफ़ी- इच्छानुसार
६. संभव हो तो घंटेवाले हलवाई का सोहन हलवा भी

डिनर.

१. पेटाइजर के लिये पकौड़ा या आलू टिक्की और एक प्लेट चाट
२. बटर मलाई कोफ़्ता
३. कढ़ाई पनीर
४. फ़्रायड पोटेटो इन हनी एन्ड जिन्जर सास
५. चीज परांठा
६ बटर्ड अप्रीकाट एंड प्लम इन स्वीट क्रीम


अब भाई साहब आप ऐसा कीजिये कि फौरन से इस पर अमल करना शुरू कर दीजिये. साथ ही साथ रोजाना भाई अभिनव शुक्ला की इस कथा का पाठ करते रहिये.