Tuesday, May 1, 2007

मुक्तक महोत्सव-३३ से ३७ तक

मित्रों,
इस सप्ताह के ५ मुक्तक आपकी सेवा में पेश हैं. आशा है टिप्पणियों के माध्यम से आप इस महोत्सव को सफल बनायेंगे.

मुक्तक महोत्सव



था गणित और इतिहास-भूगोल सब, औ' पुरातत्व विज्ञान भी पास था
भौतिकी भी रसायन भी और जीव के शास्त्र का मुझको संपूर्ण अहसास था
अंक, तकनीक के आँकड़ों में उलझ ध्यान जब जब किया केन्द्रित ओ प्रिये
थीं इबारत किताबों में जितनी लिखीं, नाम बन कर मिली वे मुझे आपका



तूलिका आई हाथों में जब भी मेरे, कैनवस पर बना चित्र बस आपका
लेखनी जब भी कागज़ पे इक पग चली, नाम लिखती गई एक बस आपका
चूड़ियों की खनक, पायलों की थिरक और पनघट से गागर है बतियाई जब
तान पर जल तरंगों सा बजता रहा मीत जो नाम है एक बस आपका



कनखियों से निहारा मुझे आपने
राह के मोड़ से एक पल के लिये
मनकामेश्वर के आँगन में जलने लगे
कामना के कई जगमगाते दिये
स्वप्न की क्यारियों में बहारें उगीं
गंध सौगंध की गुनगुनाने लगी
आस की प्यास बढ़ने लगी है मेरी
आपके साथ के जलकलश के लिये



आप पहलू में थे फिर भी जाने मुझे क्यूँ लगा आप हैं पास मेरे नहीं
थे उजाले ही बिखरे हुए हर तरफ़, और दिखते नहीं थे अन्धेरे कहीं
फूल थे बाग में नभ में काली घटा, और थी बाँसुरी गुनगुनाती हुई
फिर भी संशय के अंदेशे पलते रहे,बन न जायें निशा, ये सवेरे कहीं.



आप नजदीक मेरे हुए इस तरह, मेरा अस्तित्व भी आप में खो गया
स्वप्न निकला मेरी आँख की कोर से और जा आपके नैन में सो गया
मेरा चेतन अचेतन हुआ आपका, साँस का धड़कनों का समन्वय हुआ
मेरा अधिकार मुझ पर न कुछ भी रहा,जो भी था आज वह आपका हो गया



* ** * * ** *


1 comment:

Udan Tashtari said...

रुक जाता है मगर फिर से आता है
नया नया सा इक माहोल बनाता है
हैं हर पल अगली कड़ी की राह तकते
मुक्तक महोत्सव हमें बहुत भाता है.

--इसे नियत तिथी पर प्रकाशित करने का प्रयास किया जाये. सुन्दर मुक्तक हैं, बधाई!!